अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस: 1 मई
हर साल एक मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है. एक मई का दिन दुनिया के मजदूरों और श्रमिक वर्ग को समर्पित होता है. इस दिन को श्रम दिवस, श्रमिक दिवस या मई दिवस भी कहा जाता है। ये दिन मजदूरों के सम्मान, उनकी एकता और उनके हक के समर्थन में मनाया जाता है। इस दिन दुनिया के कई देशों में छुट्टी होती है। इस मौके पर मजदूर संगठनों से जुड़े लोग रैली व सभाओं का आयोजन करते हैं और अपने अधिकारों के लिए आवाज भी बुलंद करते हैं हालांकि कोरोना के चलते इस बार इस तरह के आयोजन नहीं हो सकेंगे।
इतिहास
अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत एक मई 1886 को अमेरिका में एक आंदोलन से हुई थी। इस आंदोलन के दौरान अमेरिका में मजदूर काम करने के लिए 8 घंटे का समय निर्धारित किए जाने को लेकर आंदोलन पर चले गए थे। 1 मई, 1886 के दिन मजदूर लोग रोजाना 15-15 घंटे काम कराए जाने और शोषण के खिलाफ पूरे अमेरिका में सड़कों पर उतर आए थे। इस दौरान कुछ मजदूरों पर पुलिस ने गोली चला दी थी जिसमें कई मजदूरों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। इसके बाद 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की दूसरी बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें यह ऐलान किया गया कि 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन सभी कामगारों और श्रमिकों का अवकाश रहेगा। इसी के साथ भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में काम के लिए 8 घंटे निर्धारित करने की नींव पड़ी।
भारत में शुरुआत
भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 में हुई। भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने 1 मई 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की थी। यही वह मौका था जब पहली बार लाल रंग झंडा मजदूर दिवस के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। यह भारत में मजदूर आंदोलन की एक शुरुआत थी जिसका नेतृत्व वामपंथी व सोशलिस्ट पार्टियां कर रही थीं। दुनियाभर में मजदूर संगठित होकर अपने साथ हो रहे अत्याचारों व शोषण के खिलाफ आवाज उठा रहे थे।
जानवरों के लिए रूस ने बनाई दुनिया की पहली कोरोना वायरस वैक्सीन
कोरोना वायरस का कहर मनुष्यों के अलावा जानवरों को भी झेलना पड़ रहा है। ऐसे में रूस ने अब जानवरों के लिए कोरोना वायरस के खिलाफ दुनिया का पहला टीका बना लिया है। जानवरों के लिए बनाई गई इस नई वैक्सीन का नाम कार्निवैक-कोव है। देश के कृषि मामलों पर नजर रखने वाली संस्था रोजेलखोनाजोर ने बुधवार को इस बात की जानकारी दी है। रूस में पहले से ही मनुष्यों के लिए कोरोना वायरस की तीन टीके उपलब्ध हैं, जिनमें से सबसे लोकप्रिय वैक्सीन स्पुतनिक वी है। मास्को ने दो अन्य वैक्सीन एपिवैककोरोना और कोविवैक को भी आपातकालीन स्वीकृति दी है।
संस्था ने बताया कि जानवरों के लिए कोरोना वैक्सीन कार्निवैक-कोव रोजेलखोनाजोर की ही एक इकाई द्वारा विकसित की गई है। रोजेलखोनाजोर के उप प्रमुख कोंस्टेंटिन सवेनकोव ने कहा कि वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल पिछले साल अक्टूबर में शुरू हुआ था। इसमें कुत्तों, बिल्लियों, आर्कटिक लोमड़ियों, मिंक, लोमड़ियों और अन्य जानवरों को शामिल किया गया था।
ट्रायल के परिणाम में यह बात सामने आई कि वैक्सीन जानवरों के लिए हानिरहित और अत्यधिक प्रतिरक्षात्मक है। जितने जानवरों को टीका लगाया गया था उन सबमें कोरोना वायरस के लिए एंटीबॉडी विकसित हुई। टीकाकरण के बाद प्रतिरक्षण छह महीने तक रहता है। वैक्सीन के बड़े पैमाने पर उत्पादन अप्रैल के शुरू में शुरू हो सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान दिवस: 2 मई
विश्व भर में प्रतिवर्ष दो बार ‘अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान दिवस का आयोजन किया जाता है, पहला 2 मई को, जबकि दूसरा 26 सितंबर को। इस दिवस के अवसर पर विभिन्न संग्रहालयों और खगोलीय संस्थानों द्वारा खगोल विज्ञान के संबंध में में जागरूकता फैलाने के लिये सेमिनार, कार्यशालाओं और अन्य गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। वर्ष 1973 में, उत्तरी कैलिफोर्निया के खगोलीय संघ के अध्यक्ष ‘डौग बर्जर’ ने पहले खगोल विज्ञान दिवस का आयोजन किया था। इस दिवस के आयोजन का प्राथमिक उद्देश्य आम जनमानस को खगोल विज्ञान के महत्त्व और संपूर्ण ब्रह्मांड के संबंध में जागरूक करना है और उन्हें इसके प्रति रुचि विकसित करने में मदद करना है। खगोल विज्ञान का अध्ययन बीते लगभग 5,000 वर्षों से प्रचलित है और इसे संबद्ध विज्ञान शाखाओं में सबसे पुराना माना जाता है। वर्ष 1608 में टेलीस्कोप के आविष्कार के बाद ब्रह्मांड के रहस्य को जानने में खलोग विज्ञान का महत्त्व और भी अधिक बढ़ गया। समय के साथ-साथ बीते कुछ दशकों में प्रौद्योगिकी ने महत्त्वपूर्ण वृद्धि की है और कई सिद्धांत एवं अवलोकन प्रस्तुत किये गए हैं, जिससे खगोल विज्ञान और अधिक प्रगति कर रहा है।
ड्राइवरलेस कारों को चलाने की अनुमति देने वाला पहला देश बना ब्रिटेन
दुनिया में स्वचालित कारों को सड़कों पर चलाने की कानूनी अनुमति देने वाला ब्रिटेन पहला देश बन गया है। बुधवार को ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की है कि खुद से चलने वाली कारें मोटरवे पर धीमी रफ्तार में चलाई जा सकेंगी। देश के परिवहन मंत्रालय ने कहा है कि हाईवे कोड को नए नियमों के अनुकूल बनाने के लिए सही शब्द तलाशे जा रहे हैं ताकि स्वचालित कारों का सुरक्षित इस्तेमाल किया जा सके। मंत्रालय ने बताया कि नए नियमों के तहत पहला बदलाव ऑटोमेटेड लेन कीपिंग सिस्टम्स (एएलकेएस) का होगा जिसके जरिये ऐसे सेंसर और सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किए जाएंगे कि ऐसी कारें अपनी लाइन में रहकर ब्रेक लगाएं और जरूरत के हिसाब से रफ्तार को घटा या बढ़ा सकें। ब्रिटिश सरकार ने कहा है कि एएलकेएस का इस्तेमाल मोटरवे तक ही सीमित होगा और अधिकतम रफ्तार 60 किलोमीटर प्रतिघंटा रहेगी। ब्रिटेन की सरकार ने अनुमान लगाया है कि ब्रिटेन की लगभग 40 प्रतिशत कारों में 2035 तक स्व-ड्राइविंग क्षमता होगी. इससे देश में 38,000 नौकरियों का सृजन होगा.
कनाडा ने भारत को 70 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद देने का ऐलान किया
भारत इन दिनों कोरोना वायरस के दूसरे लहर का सामना कर रहा है, जिसकी वजह से विश्व के कई देश अलग अलग तरह से भारत की मदद कर रहे हैं। इसी कड़ी में कनाडा ने भी भारत को बड़ी मदद दी है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत को कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर यानि करीब 70 करोड़ रुपयों की सहायता प्रदान करने की घोषणा की है. कोरोना के बढ़ते मामलों की वजह से स्वास्थ्य महकमे पर बहुत बोझ पड़ा, जिसकी वजह से स्थिति ज्यादा खराब हुई. बता दें कि इससे पहले दूसरे देश भी भारत की मदद करने का एलान कर चुके हैं. अमेरिका, फ्रांस, सऊदी अरब समेत कई ऐसे देश हैं, जो आगे आकर भारत की मदद कर रहे हैं. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि 'कनाडा सरकार ने कनाडा रेड क्रॉस सोसाइटी की तरफ से भारत की रेड क्रॉस सोसाइटी को 10 मिलियन डॉलर की मदद दी गई है, इन पैसे से मेडिकल सामान खरीदा जा सकेगा'
उत्तराखंड सरकार ने चारधाम यात्रा पर रोक लगा दी
उत्तराखंड सरकार ने कोविड महामारी के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए इस साल
होने वाली चारधाम यात्रा पर रोक लगा दी है. उत्तराखंड के मुख्यामंत्री तीरथ सिंह
रावत ने कहा कि प्रदेश में कोविड मामलों में बढ़ोतरी को देखते हुए चारधाम की
यात्रा को स्थगित किया जाता है. केवल पुजारी ही वहां पूजा कर सकते हैं. पूरे देश
के लोगों के लिए चारधाम यात्रा को अभी के लिए बंद किया जाता है. बता दें,
पिछले साल भी
कोरोना के संक्रमण के चलते उत्तराखंड सरकार ने चार धाम यात्रा पर रोक लगा दी थी.
यह यात्रा 14 मई 2021 से शुरू होने वाली थी. 14 मई को यमुनोत्री मंदिर के कपाट खुलने के साथ चार धाम यात्रा शुरू होनी थी. उत्तराखंड की प्रसिद्ध चारधाम यात्रा के तहत श्रद्धालु उत्तराखंड स्थित बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा करते हैं. इस यात्रा में लाखों लोग शामिल होते हैं. यात्रा में शामिल होने के लिए देश के अलग-अलग राज्यों से भक्त यहां पहुंचते हैं.
अगले दो साल में 15 लाख करोड़ रुपये के सड़क निर्माण का लक्ष्य
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में घोषणा की कि भारत सरकार ने
अगले दो वर्षों में 15 लाख करोड़ रुपये के सड़क निर्माण का लक्ष्य रखा
है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, भारत सरकार का
लक्ष्य 2021-22 में प्रति दिन 40 किलोमीटर सड़क का
निर्माण करना है. भारत सरकार सड़क क्षेत्र में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष
विदेशी निवेश की अनुमति दे रही है. इससे नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (NIP)
को बढ़ावा देने में
मदद मिलेगी. केंद्रीय सड़क
परिवहन एवं राजमार्ग और सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्यम
(एमएसएमई) मंत्री श्री नितिन गडकरी ने कहा कि सरकार आधारभूत ढ़ांचे के विकास को
भरसक प्राथमिकता दे रही है और अगले दो वर्षों में 15 लाख करोड़ रुपये की लागत से सड़क निर्माण का
लक्ष्य रखा है।
NHAI के आंकड़ों के अनुसार अभी प्रतिदिन 37 किमी सड़क का निर्माण किया जा रहा है. जिसे जल्द ही बढ़ा कर 40 किमी प्रतिदिन किया जाएगा. वहीं NHAI ने हाल ही में 24 घंटे में 2,580 मीटर के फोर लेन राजमार्ग का निर्माण करके विश्व रिकॉर्ड बनाया था.
सोली सोराबजी का 91 साल की उम्र में निधन
देश के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी का शुक्रवार सुबह
निधन हो गया है.
उनकी उम्र 91 साल थी. दिल्ली के एक प्राइवेट अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। कोरोना
संक्रमित होने के चलते उन्हें यहां भर्ती करवाया गया था।
सोली सोराबजी का जन्म 1930 में महाराष्ट्र में हुआ था, 1953 में उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट से अपनी प्रैक्टिस शुरू की। सोराबजी 1989 से 1990 तक अटॉर्नी जनरल रहे, दूसरे बार ये जिम्मेदारी उन्होंने 1998 से 2004 तक निभाई। राम जेठमलानी जिस वक्त देश के कानून मंत्री थे उस दौरान सोली सोराबजी एटॉर्नी जनरल थे. 2002 में उन्हें पद्म विभूषण सम्मान भी मिला। करीब सात दशक तक कानूनी पेशे से जुड़े रहे। बड़े मानवाधिकार वकीलों में सोराबजी की गिनती होती थी। ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच बाईलैटरल लीगल रिलेशंस की सर्विस के लिए मार्च 2006 में उन्हें ऑर्डर ऑफ ऑस्ट्रेलिया का ऑनरेरी मेंबर चुना गया। 1998-2004 के बीच मानवाधिकारों की रक्षा और इसे बढ़ावा देने के लिए बनी UN-सब कमीशन के चेयरमैन रहे। सोराबजी की गिनती उन वकीलों में होती है, जिन्होंने भारत के संवैधानिक कानूनों के विस्तार में प्रमुख भूमिका निभाई है।
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